भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
'''“करो भोर का अभिनन्दन'''रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’मत उदास हो मेरे मन करो भोर का अभिनन्दन !काँटों का वन पार कियाबस आगे है चन्दन-वन ।बीती रात ,अँधेरा बीताकरते हैं उजियारे वन्दन ।सुखमय हो सबका जीवन !<br>
करो भोर का अभिनन्दन !<br> काँटों का वन पार किया<br> बस आगे है चन्दन-वन ।<br>बीती रात ,अँधेरा बीता<br> करते हैं उजियारे वन्दन ।<br> सुखमय हो सबका जीवन !<br> आँसू पोंछो, हँस देना<br> धूल झाड़कर चल देना ।<br> उठते –गिरते हर पथिक को<br> कदम-कदम पर बल देना ।<br>मुस्काएगा यह जीवन ।<br> कलरव गूँजा तरुओं पर<br> नभ से उतरी भोर-किरन ।<br> जल में ,थल में, रंग भरे <br> सिन्दूरी हो गया गगन ।<br> दमक उठा हर घर-आँगन ।<br>
Anonymous user