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<Poem>हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती -<br>स्वयंप्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती -<br>अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो,<br>प्रशस्त पुण्य पंथ हैं - बढ़े चलो बढ़े चलो।<br><br>
असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी।<br>सपूत मातृभूमि के रुको न शूर साहसी।<br>अराति सैन्य सिंधु में - सुबाड़वाग्नि से जलो,<br>प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो बढ़े चलो।<br><br/poem>