भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKRachna
|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
}} चार मुक्तक <br>
जोड़ने के काम में ज़िन्दगी हमने बिताई ।जो थी शक्ति तुम्हारी तोड़ने के काम आई || आज हमको है नहीं तनिक भी अफ़सोस मन में ।<br>सदा ही उदास दिल में प्यार की ज्योति जगाई ॥<br>|| '''2.>>>>><br>अपने लिए हम कब जिए ,नहीं जानते हैं ।<br>है पास नहीं दौलत हमारे- मानते हैं ॥<br>||पर नहीं कर्ज़ हमारे सिर पर है किसी का ।<br>कौन अपना यहाँ पराया पहचानते हैं ॥<br>|| '''3.>>>>>><br>हाँ उनका कर्ज़ हमारे सिर पर अब तक चढ़ा है।<br>जिन्होंने हमारे उर के हर कम्पन को पढ़ा है ॥<br>||जिक्र तक भी नहीं किया है जिन्होंने प्यार देकर ।<br>उनके बल पर हमारा हर क़दम आगे बढ़ा है ।।<br>>>>>><br>'''4. धर्म नहीं इंसान को इंसान से है बाँटता ।<br>धर्म नहीं जुनून में कभी सिर किसी का काटता ॥<br>||जग में दु:ख का या दर्द का नाम कुछ होता नहीं<br>धर्म वह जो राह की हर खाई को है पाटता ॥||<br/poem>