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Kavita Kosh से
बहती नदी की बांधे बांध
चुल्लू मे में हलचल क्या हो
हर छन हो जब आस बना
हर छन फ़िर फिर निर्बल क्या हो
रात ही गर चुपचाप मिले
सुबह फ़िर फिर चंचल क्या हो
आज ही आज की कहें-सुने