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Kavita Kosh से
समुद्री छाँव में घन-सघन वृक्षों की
सुस्ता रहे थके माँदे मांदे अजनबी कुछ लोग
कुछ मीठी नींद में खर्राटे भर रहे
इतनी सारी चीज़ें छोड़ जानी है
कुछ ज्यादा ज़्यादा ही तादाद में
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