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Kavita Kosh से
<Poem>
रात छाई है मेरे इस विराट महानगर में,
और मैं... दूर जा रही हू`ं हूँ सोए पड़े इस घर से।
लोग सोचते हैं... होगी कोई लड़की, कोई औरत,
पर यह मैं ही जानती हूँ