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|रचनाकार=ज्ञान प्रकाश विवेक
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
अजीब बात वो चिड़ियों का आशियाना था
किजिसका आँधियों के साथ दोस्ताना था

परिन्दे देख के उसको हुए थे ख़ौफ़ज़दा
बड़ा अचूक उस कम्बख़्त का निशाना था

हमें ये हुक़्म मिला था कि भूखे बच्चों को
अदब का रोज़ सुबह क़ायदा पढ़ाना था

बड़ों के सामने छोटे अदब से आते थे
हमारी सभ्यता का वो भी इक फ़साना था

थी कोचवान के हर दर्द की समझ उसको
वो टूटी टाँग का घोड़ा बड़ा सयाना था

तआल्लुक़ात मैं पल भर में तोड़ता कैसे
कि उससे रिश्ता पुराना, बड़ा पुराना था

वो चाहता था उसे कोई ख़त लिखे लेकिन
न उसका नाम पता था, न कुछ ठिकाना था

मैं किस तरह उसे मेहमान-सा विदा करता
कि मेरे घर तो उसे बार-बार आना था.
</poem>
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