भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKGlobal}} 
{{KKRachna
 |रचनाकार=श्रीनिवास श्रीकांत|संग्रह=घर एक यात्रा है / श्रीनिवास श्रीकांत
}}
   '''हातो* पहाड़''' <Poem>
कल
 इनके नीचे से गुजरते गुज़रते हुए 
यह लगा
 ये ताशघरों ताश-घरों की तरह अभी 
भड़भड़ा कर गिर जाएँगी
 
गत वर्ष
 
आया था भूकम्प
 
हिली थी धरती
 
और तब लगा था
 
कि ये अपनी कायनात समेत
 
हो जाएँगी ढेर
 
इनके नीचे दब जाएँगी
 
जाने कितनी नियतियाँ
 
मुस्कुराहटें
 
जिजीविषाएँ
 
ये इमारतें नहीं
 
नागफनियाँ हैं
 
कंकरीट की
 
हातो पहाड़ की पीठ पर
 
अव्यक्त मृत्यु को ढो रही हैं ये
 
डिब्बीनुमा
 मधुछत्तों -सी हवेलियाँ 
जिनमें पंखहीन
 
मानुष-मक्खियाँ
 
जमा कर रहीं
सपनों का शहद
और होती हैं ख़ुश।
सपनों का शहद
और होती हैं खुश।'''*हातो- कश्मीरी कुली'''</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,443
edits