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 |रचनाकार=श्रीनिवास श्रीकांत|संग्रह=घर एक यात्रा है / श्रीनिवास श्रीकांत
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    '''तूफान'''<Poem>हू-हू कर चल रहा है तूफानतूफ़ान
हवाओं की चुड़ैलें
 
नाच रहीं छतों पर
 
डर रहे नींद में
 
विचारों के जनपद
 दु:स्वप्र स्वप्न सा फैला है
हर ओर
 
झुक डोल रहे हैं वृक्ष
 
पार की ढलानों पर
 
जहाँ रुदन कर रहीं
 
वनों की रुदालियाँ
 मौसम की अकाल -मृत्यु पर 
चट्टानों पर सिर पटकतीं
 
बाल बिखरे हैं उनके
 
और दिखायी भी नहीं देतीं
 चल रहा है हू-हू कर तूफानतूफ़ान
नाचता है वह झबरा-झबरा
 देव -कोप से सिर हिलाता 
शब्द टूट रहे
 
पत्थरों की तरह
 
भावों पर गड़ रहीं
 
उसकी किरचें
 तूफान तूफ़ान चल रहा है लगातार विचारों केको
अपने पैरों तले कुचलता
 
समय के बीहड़ मैदान में
 
पागल घोड़ों की तरह भागता
 
उछलता
 
साइस कहीं छुपा है
 
अस्तबल में
 
भयाक्रान्त।
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