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|रचनाकार=श्रीनिवास श्रीकांत|संग्रह=घर एक यात्रा है / श्रीनिवास श्रीकांत
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<Poem>
सन्नाटा
एकाकीपन
और वायव स्तब्धता
सब बुन रहे
एक अनिर्वच माधुरी
मस्तक की त्रिकुटी में
श्रुतियाँ हैं निष्स्पन्द निस्पन्द
फिर भी
अन्दर उतर रहा
एक अपूर्व राग
बिना सरगम
हो रहा स्वरसंघात
हो रही अद्वितीय
दर्शन की रचना
कुण्डलिनी खेल रही
अपना मायावी खेल
हर चक्र का
करती बेधन
लक्षित हो गया है
बिन्दु भी
बजने लगा है
अनहद निनाद
नाडिय़ों में
हवा की बीन
बज रही
शान्त और सौम्य
तन्मात्राओं से हुए मुक्त
सप्त -कायाओं के
सभी धरातल
घुल रहा अहंकार का
प्लावी हिमशैल
आद्यान्धकार में
बर्फ की सभी पर्तें
हुईं अदृश्य
दृश्यमान हुआ मानसरोवर
कैलाश का श्वेत आँचल
तैरने लगे कमल हंस।
</poem>