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|रचनाकार=श्रीनिवास श्रीकांत|संग्रह=घर एक यात्रा है / श्रीनिवास श्रीकांत
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<Poem>
भाव बुनते हैं
अपने कौशेय फलक पर
अदभुत मोजेक
उनमें होता है
सहज स्पन्दन
अन्तरालों में बजता समय
याद आती
कोई भूली हुई कथा
वे सब हैं
एक- एक कर अंकित
रंग-बिरंगे चित्र
अपने भूदृश्यों के साथ
यथार्थ से ज्य़ादा दिलकश हैं वे
रूप के चितेरे
हैं वे सुगन्ध
जल में उभरते प्रतिबिम्ब
एकाएक
स्पष्ट से होते और और स्पष्टïतरस्पष्टतर
और फिर बुझ जाते
सचमुच के ठोस
और जानदार पंछी हैं वे
मगर उड़ान के लिये
नहीं फडफ़ड़ाते अपने पंख
उनमें भरी होती है हवा
गुब्बारों की तरह उड़ते हैं वे
हो जाते हैं वायवीय
पकड़ में नहीं आते
भाव हैं जादूगर
चुटकी मिट्टी से घड़ देते हैं
एक पूरा जीता-जागता संसार।
</poem>