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|रचनाकार=तुलसी रमण
|संग्रह=घर एक यात्रा / तुलसी रमण
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लाशों के ढेर पर
उमड़ पड़ते हैं छायाकार
लाशों के गणित में व्यस्त
नामानिगार
और कुछ ताजा भय
पसर जाता है
लाशों के छपे
चित्रों के साथ
शहर बन्द रहेगा
कई दूसरे प्रदेशों और
शहरों के साथ
हाजिर है वही समाचार
कहां से आता है समाचार
मस्तिस्क के किस कोने बैठ
जाने कौन उगाता है
समाचार
हर बस रोके जाने पर
तैयार हो जाते हैं बच्चे
अगले दिन के लिए
कुछ डबल रोटियां
कुछ अंडे और
पापा की सिगरेट
लाने के लिए
खिड़कियों पर पर्दे लगा
भीतर बन्द होता है शहर
बाहर खुला मंडराता है
पिशाच
पर्दे को जरा-सा उठा
बार-बार देखते हैं बच्चे
कहीं कुछ भी तो नहीं
सुनसान में कांपती
एक चिड़िया के सिवा
बाहर मत झांको बच्चों
चुपचाप बैठे रहो
भीतर उस कमरे में’
पापा की जुबान पर
नाचता है पिशाच
बच्चे सरका देते हैं पर्दा
किसी दूसरी खिड़की तलाश में
उड़ जाती है चिड़िया
बच्चों की आंखों में
डबडबाते हैं सवाल
क्या होता है बन्द?
कैसा होता है पिशाच?
और क्यों बाहर निकल उसे
डंडे से भगा नहीं आते पापा?
क्यों छोड़ देती हैं गाड़ियां
खाली सड़क उसके लिए?
क्यों डरते हैं लोग पिशाच से?
क्यों मारे जाते हैं वे
इस बन्द के लिए?
कॉल-बैल पर उंगली पड़ते ही

भीतर दन-दनाती है
स्टेनगन आदमी के लिए नहीं
बन्दूक के लिए खुलता है
शहर का हर दरवाज़ा
बन्दूक की नाली के नीचे
थरथराता है
भूखण्ड
शीशों की खिड़कियों पर
कपड़े के पर्दे सरका
बन्द होती है चिड़िया
आज इक्कीस घोंसले
और उजड़ गए
फिर वही समाचार
बड़ी संवेदना समाचारों में
डूब जाता यह समाचार
बन्दूक की आवाज सुनकर
सयाले में पहले ही
परदेस में उड़ी कितनी ही चिड़ियाँ
लौटती नहीं घोंसलों में
चिड़ियाँ
और स्थिति दी जाती है सामान्य करार
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