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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसी रमण |संग्रह=ढलान पर आदमी / तुलसी रमण }} <poem> मु...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=तुलसी रमण
|संग्रह=ढलान पर आदमी / तुलसी रमण
}}
<poem>
मुड़- मुड़ देखती
यह शहर छोड़ जाती हो तुम पेड़ से गिरता है
फड़फड़ाता हुआ इक पत्ता
पतझड़ होता है पूरा शहर
बहुत लम्बी तन जाती है
सड़क
मेरे-तुम्हारे बीच की डोर
नंगी शाख पर टँग जाती है
मेरी आँखें
आकाश में अलग पड़ी
धीरे-धीरे सरकती
बदली के थीक नीचे
सूखी ज़मीन से
चंद निनके चुनता हूँ मैं
चुपचाप शहर लौट आती हो तुम
एक रहस्य की तरह
बरसती है बदली
नम होती है ज़मीन
फूटती है कोंपल
बसंत होता है पूरा शहर
इन्द्र-धनुष पर टँग जाती हैं
मेरी आँखे
तुम्हारी आँखें
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=तुलसी रमण
|संग्रह=ढलान पर आदमी / तुलसी रमण
}}
<poem>
मुड़- मुड़ देखती
यह शहर छोड़ जाती हो तुम पेड़ से गिरता है
फड़फड़ाता हुआ इक पत्ता
पतझड़ होता है पूरा शहर
बहुत लम्बी तन जाती है
सड़क
मेरे-तुम्हारे बीच की डोर
नंगी शाख पर टँग जाती है
मेरी आँखें
आकाश में अलग पड़ी
धीरे-धीरे सरकती
बदली के थीक नीचे
सूखी ज़मीन से
चंद निनके चुनता हूँ मैं
चुपचाप शहर लौट आती हो तुम
एक रहस्य की तरह
बरसती है बदली
नम होती है ज़मीन
फूटती है कोंपल
बसंत होता है पूरा शहर
इन्द्र-धनुष पर टँग जाती हैं
मेरी आँखे
तुम्हारी आँखें
</poem>