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|रचनाकार=ओमप्रकाश सारस्वत
|संग्रह=दिन गुलाब होने दो / ओम प्रकाश सारस्वत
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<Poem>
जिन्होंने स्वतंत्र कराया
यह देश
उनको नमन
जिन्होंने दिन यह दिखाया
यह पेश
उनको नमन

जिन्होंने दहकी जवानी
लुटा दी राहों में
जिन्होंने सपने संवारे
सिसकती आहों में
जिन्होंने रोता हंसाया
यह देश
उनको नमन
जिन्होंने दिन यह दिखाया
यह पेश
उनको नमन

जिनमें सिंधु से गहरा था
देश का जज़्बा
जिनमें स्वर्ग से ऊंचा था
राष्ट्र का बल्वा
जिन्होंने सिर पे बिठाया
यह देश उनको नमन
जिन्होंने दिन यह दिखाया
यह पेश उनको नमन
जिनका एक ही बस
इंकलाब नारा था
जिनको वंदे मातरम्
वतन-सा प्यारा था
जिन्होंने गीता-सा गाया
यह देश
उनको नमन
जिन्होंने दिन यह दिखाया
यह पेश
उनको नमन

जिन्हें यह देश ही
मंदिर ईमान मस्जिद था
जिन्हें यह देश ही
तन-प्राण-स्वजन सब कुछ था
जिन्होंने सोता जगाया
यह देश
उनको नमन
जिन्होंने दिन यह दिखाया
यह पेश उनको नमन
जिन्होंने मृत्यु से पूछा
तू अपना मोल बता
जिन्होंने शत्रु से पूछा
तू अपना तौल बता
जिन्होंने कौल निभाया था
लहू की खा के कसम
जिन्होंने दिन यह दिखाया
यह पेश
उनको नमन

तुम्हारे सामने हम भी
यह क़सम खाते हैं
कि देश पहले है
और शेष सारे नाते हैं
तुम्हारे सपनों को अपिर्त
हमारे सारे करम
जिन्होंने दिन यह दिखाया
यह पेश उनको नमन
</poem>
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