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{{KKRachna
|रचनाकार=दाग़ देहलवी
}} <poem> हुस्न-ए-अदा भी खूबी-ए-सीरत में चाहिए,यह बढ़ती दौलत, ऐसी ही दौलत में चाहिए।
हुस्नआ जाए राह-ए-अदा भी खूबीरास्त पर काफ़िर तेरा मिज़ाज,इक बंदा-ए-सीरत में चाहिए,<br>यह बढ़ती दौलत, ऐसी ही दौलत ख़ुदा तेरी ख़िदमत में चाहिए ।<br>
आ जाए राहदेखे कुछ उनके चाल-चलन और रंग-रास्त पर काफ़िर तेरा मिज़ाजढंग,<br>इक बंदा-ए-ख़ुदा तेरी ख़िदमत दिल देना इन हसीनों को मुत में चाहिए ।<br>
देखे कुछ उनके चालयह इश्क़ का है कोई दारूल-चलन और रंग-ढंगअमां नहीं,<br>दिल देना इन हसीनों को मुत हर रोज़ वारदात मुहब्बत में चाहिए ।<br>
यह इश्क़ माशूक़ के कहे का है कोई दारूल-अमां नहींबुरा मानते हो ‘दाग़‘,<br>हर रोज़ वारदात मुहब्बत बर्दाश्त आदमी की तबीअत में चाहिए ।<br>
माशूक़ के कहे का बुरा मानते हो ‘दाग़‘,<br>बर्दाश्त आदमी की तबीअत में चाहिए ।<br> '''शब्दार्थ :हुस्न-ए-अदा: बात करने का सलीक़ा,<br>सीरत: चरित्र,<br>राह-ए-रास्त: सीधा रास्ता,<br>दारूल-अमां: शांति स्थल ।<br/poem>
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