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Kavita Kosh से
वे मुस्काते फूल नहीं<br>
जिनको आता है मुर्झाना,<br>
वे तारो तारों के दीप नहीं <br>
जिनको भाता है बुझ जाना <br><br>
वे सूनो सो सूने से नयन,नहीं <br>
जिनमें बनते आंसू मोती, <br>
वह प्राणों की सेज,नही <br>
जिसमें बेसुध पीडापीड़ा, सोती <br><br>
वे नीलम के मेघ नही नहीं <br>
जिनको है घुल जाने की चाह <br>
वह अनन्त रितुराज,नही नहीं <br>जिसनो जिसने देखी जाने की राह <br>
ऎसा तेरा लोक, वेदना <br>
जलना जाना नहीं नहीं <br>
जिसने जाना मिट्ने मिटने का स्वाद<br>
क्या अमरों का लोक मिलेगा <br>
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