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रुमाल / गोरख पाण्डेय

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वे नहीं जानते किसने इन्हें बुना
जा कर कई दुकानों से ख़ुद इन्हें चुना
तह-पर तह-तह करते खूब ख़ूब सम्हाल-सम्हालआफ़िस ऑफ़िस जाते जेबों में भर दो-चार
हैं नाक रगड़ते इनसे बारम्बार
जब बास बॉस डाँटता लेते एक निकाल
सब्ज़ी को लेकर बीवी पर बिगड़ें
या मुन्ने की माँगों पर बरस पड़ें