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{{KKRachna
|रचनाकार=सीमाब अकबराबादी
|संग्रह=
}}
<poem>
किया था जमा जाँबाज़ों ने जिसको जाँफ़रोशी से
रुपहले चन्द टुकडों पर वो इज़्ज़त बेच दी तूने
कोई तुझ-सा भी बेग़ैरत ज़माने में कहाँ होगा?
भरे बाज़ार में तक़दीरे मिल्लत बेच दी तूने
</poem>
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|रचनाकार=सीमाब अकबराबादी
|संग्रह=
}}
<poem>
किया था जमा जाँबाज़ों ने जिसको जाँफ़रोशी से
रुपहले चन्द टुकडों पर वो इज़्ज़त बेच दी तूने
कोई तुझ-सा भी बेग़ैरत ज़माने में कहाँ होगा?
भरे बाज़ार में तक़दीरे मिल्लत बेच दी तूने
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