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08:47, 18 जनवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सीमाब अकबराबादी
|संग्रह=
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किया था जमा जाँबाज़ों ने जिसको जाँफ़रोशी से
रुपहले चन्द टुकडों पर वो इज़्ज़त बेच दी तूने
कोई तुझ-सा भी बेग़ैरत ज़माने में कहाँ होगा?
भरे बाज़ार में तक़दीरे मिल्लत बेच दी तूने
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