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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवतार एनगिल |एक और दिन / अवतार एनगिल }} <poem> उस दिन ज...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अवतार एनगिल
|एक और दिन / अवतार एनगिल
}}
<poem>
उस दिन जब सावन की बौछरें
ढीठ बन बरसीं
उन नंगी पहाड़ियों के पीछे छिपा
भादों भी
किसी पत्थर पर
अपनी कटार को धार दे रहा था
माँ ने कहा--
अब तो '''“हमसाये''1 '''
माँ-पिओ जाए” भी
आँखें फेरने लगे हैं
पिता ने काबुली रुमाल में बँधे अनार
माँ को सौंपें
और फैसला सुनाया—
“आज रात ही
छोड़ना पैसी '''पिशौर”2'''
उस रात
जब द्वार पर ताला जड़कर
माँ ने हमारे घर की चाबियाँ
फरीदा आपा को सौंपी
हम आपा के परिवार संग
'''ढक्की3''' उतरने लगे
नीचे पहुँचकर
मास्टर असगर अली
और पिता जी
दो पर्छाईयों की तरह
एक दूसरे के गले मिले
“ठण्ड” वरत जासी,” मास्साब ने कहा
(शांति हो जाएगी) ।
"असीं वापस आसींयें!” पिता जी बोले
(हम लौटेंगे)।
क्षण भर के लिए तूफान में घिरा
एक पत्ता दूसरे के पास रुका
मास्साब से अलग होकर
पिता जी ने मुझे कंधे पर बिठाया
माँ का कंधा छुआ
और काफिले के पीछे हो लिए
हमारे बायें
खड़-खड़ करते पीपल की टहनी से
लटकाती हुई पींघ4
धीरे-धीरे हिल रही थी
‘ठण्डियां छाँवाँ वाले’ वाले बाग में
गर्म हवाएं बह रही थीं
हिन्दुस्तान अमृतसार जा रहा था
पाकिस्तान लाहौर आ रहा था
और सावन की बौछरें
भादों की बिजुरियों के गले लग
धीमा-धीमा रुदन कर रही थीं
________________________
1. पड़ोसी—जो भाई-बहनों जैसे होते हैं।
2. आज रात ही पेशावर छोड़कर जाना होगा
3. चढ़ाई
4. झूला
</poem>
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|रचनाकार=अवतार एनगिल
|एक और दिन / अवतार एनगिल
}}
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उस दिन जब सावन की बौछरें
ढीठ बन बरसीं
उन नंगी पहाड़ियों के पीछे छिपा
भादों भी
किसी पत्थर पर
अपनी कटार को धार दे रहा था
माँ ने कहा--
अब तो '''“हमसाये''1 '''
माँ-पिओ जाए” भी
आँखें फेरने लगे हैं
पिता ने काबुली रुमाल में बँधे अनार
माँ को सौंपें
और फैसला सुनाया—
“आज रात ही
छोड़ना पैसी '''पिशौर”2'''
उस रात
जब द्वार पर ताला जड़कर
माँ ने हमारे घर की चाबियाँ
फरीदा आपा को सौंपी
हम आपा के परिवार संग
'''ढक्की3''' उतरने लगे
नीचे पहुँचकर
मास्टर असगर अली
और पिता जी
दो पर्छाईयों की तरह
एक दूसरे के गले मिले
“ठण्ड” वरत जासी,” मास्साब ने कहा
(शांति हो जाएगी) ।
"असीं वापस आसींयें!” पिता जी बोले
(हम लौटेंगे)।
क्षण भर के लिए तूफान में घिरा
एक पत्ता दूसरे के पास रुका
मास्साब से अलग होकर
पिता जी ने मुझे कंधे पर बिठाया
माँ का कंधा छुआ
और काफिले के पीछे हो लिए
हमारे बायें
खड़-खड़ करते पीपल की टहनी से
लटकाती हुई पींघ4
धीरे-धीरे हिल रही थी
‘ठण्डियां छाँवाँ वाले’ वाले बाग में
गर्म हवाएं बह रही थीं
हिन्दुस्तान अमृतसार जा रहा था
पाकिस्तान लाहौर आ रहा था
और सावन की बौछरें
भादों की बिजुरियों के गले लग
धीमा-धीमा रुदन कर रही थीं
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1. पड़ोसी—जो भाई-बहनों जैसे होते हैं।
2. आज रात ही पेशावर छोड़कर जाना होगा
3. चढ़ाई
4. झूला
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