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{{KKRachna
|रचनाकार=अवतार एनगिल
|एक और दिन / अवतार एनगिल
}}
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इन तंग जूतों में
लगे दुखने
एक जोड़ी पाँव

हे दूब!
हे धूप !
चट्टान री!
उतार कर इन्हें
मिलने तुम्हें
आ रहा हूं मैं
</poem>
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