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भय / मोहन साहिल

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पहाड़ की कोई पसली जब टूटकर
ढलानो से लुढ़कती चली जाती है
आँखें बंद कर लेता हूं हूँ
जब कोई देवदार
औंधे मुंह मुँह गिरता है
राजमार्ग अवरुद्ध हो जाता है
स्क्रीन पर दिखाए जाते हैं
कैंसर होने से आगाह करता है
बीड़ी न पीने को कहता है
बस -अड्डे के बोर्ड पर लिखा है ही रहता है एडस का कोई ईलाज इलाज नहीं
ग्रहण न करें बिना जाँच
किसी का ख़ून
सुनो मित्र!
तुम बताओ
इतनी चेतावनिओं चेतावनियों के बीच जीना
क्या आसान है?
</poem>
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