भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पूंजी / केदारनाथ सिंह

74 bytes removed, 06:05, 19 जनवरी 2009
{{KKGlobal}}
{{KKRachna|रचनाकार: [[=केदारनाथ सिंह]]|संग्रह=अकाल में सारस / केदारनाथ सिंह }}
[[Category:कविताएँ]]
[[Category:केदारनाथ सिंह]] ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ <Poem>
सारा शहर छान डालने के बाद
 मैं इस नतीजे पर पहुंचापहुँचा
कि इस इतने बड़े शहर में
 
मेरी सबसे बड़ी पूंजी है
 मेरी चलती हुई सांससाँस
मेरी छाती में बन्द मेरी छोटी-सी पूंजी
 
जिसे रोज़ मैं थोड़ा-थोड़ा
 ख़र्च कर देता हूंहूँ
क्यों न ऎसा हो
 कि एक दिन उठूंउठूँ
और वह जो भूरा-भूरा-सा एक जनबैंक है--
 
इस शहर के आख़िरी छोर पर--
वहाँ जमा कर आऊँ
वहां जमा कर आऊं  सोचता हूंहूँ वहां वहाँ से जो मिलेगा ब्याज 
उस पर जी लूंगा ठाट से
 
कई-कई जीवन
  'अकाल में सारस' नामक कविता-संग्रह से</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits