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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहन साहिल |संग्रह=एक दिन टूट जाएगा पहाड़ / मोहन ...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मोहन साहिल
|संग्रह=एक दिन टूट जाएगा पहाड़ / मोहन साहिल
}}
<poem>
कभी ठहर जाती है दृष्टि
कानों में गूंजती हैं भयानक आवाज़ें
भीड़ नोच डालती है भीड़ को
सारा गौरव नीचता में बदल जाता है
और मैं
मित्र के कहने पर जबरन आंखें बंद किए
खोजता हूँ शून्य
सब कुछ देखने के बाद
शांत रहना कठिन है
सब कुछ होने देना और प्रतिक्रियाहीन रहना
दुस्साहस है
दरअसल निवार्सन है मेरे मित्र का अध्यात्म
रेल या बम विस्फोट में मरे लोग
उस पर कोई असर नहीं करते
भ्रष्टाचार और चरित्रहीनता देखकर
दहलता नहीं वह विरोध नहीं करता
पूछता फिरता है सत्य की परिभाषा
जो सुविधाजनक लगे वही सत्य है उसके लिए
भीतर युद्धरत मेरा मित्र
दीखता है बाहर से शांत।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=मोहन साहिल
|संग्रह=एक दिन टूट जाएगा पहाड़ / मोहन साहिल
}}
<poem>
कभी ठहर जाती है दृष्टि
कानों में गूंजती हैं भयानक आवाज़ें
भीड़ नोच डालती है भीड़ को
सारा गौरव नीचता में बदल जाता है
और मैं
मित्र के कहने पर जबरन आंखें बंद किए
खोजता हूँ शून्य
सब कुछ देखने के बाद
शांत रहना कठिन है
सब कुछ होने देना और प्रतिक्रियाहीन रहना
दुस्साहस है
दरअसल निवार्सन है मेरे मित्र का अध्यात्म
रेल या बम विस्फोट में मरे लोग
उस पर कोई असर नहीं करते
भ्रष्टाचार और चरित्रहीनता देखकर
दहलता नहीं वह विरोध नहीं करता
पूछता फिरता है सत्य की परिभाषा
जो सुविधाजनक लगे वही सत्य है उसके लिए
भीतर युद्धरत मेरा मित्र
दीखता है बाहर से शांत।
</poem>