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साईकिल / मोहन साहिल

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|रचनाकार=मोहन साहिल
|संग्रह=एक दिन टूट जाएगा पहाड़ / मोहन साहिल
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<poem>
मेरे पास एक साईकल है
जिसका पहिया
घूमता रहता है मेरे मस्तिष्क में अनवरत
नसों की महीन डोरियों को लीलता
बिगाड़ देता है मुखाकृति
और मैं हर कहीं बिफर पड़ता हूँ

पहिया
घर से काम और
काम से घर तक आते-जाते
जुता रहता है मडगाड के नीचे
और साईकल रुकते ही
सिर पर सवार हो जाता है विष्णु चक्र सा
माँ, पत्नी और बच्चों को आहत करता
लपक पड़ता है पड़ोसियों की तरफ
मैं प्रयत्नरत हूँ ला पाऊँ किसी तरह
पहिए को नियंत्रण में।
</poem>
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