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आज की बात करें / मोहन साहिल

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<poem>
मेरे सामने आते ही आप
खोल देते हैं संदर्भों की पोटली
सुनाने लगते हैं मुझे महाभारत, रामायण के प्रसंग
पुरानी पुस्तकों से खोज लाते हैं विचार
जो आज भी नए हैं आपके लिए
आपका सारा ज्ञान
आज जुटा नहीं पाता दो जून की रोटी
आपके विचार
भरा चौराहा हो या निर्जन पगडंडी
कहीं भी खड़े नहीं टिकते
आपके संदर्भ लगते मात्र पौराणिक किस्से
जिन्हें चटखारे ले
सुनते और हँसते हैं मेरी पीढ़ी के लोग
आप करते हैं चिंता संस्कृति की
मैं चिंतित हूं थोड़ी सी धूप के लिए
आप व्यग्र हैं आजादी के लिए
मुझे है फिक्र हवा की
आपको है भाषा की चिंता
मेरे सामने समस्या है मुँह खोलने की

हैरान हूँ आपने मेरे लिए
आने वाली पीढ़ी के लिए
कुछ भी बचाए नहीं रखा
धरती के सीने से
लेकर खोद डाला आकाश तक
बड़ी-बड़ी समस्याएँ ईजाद करने के सिवा
क्या किया आपने
देश को एक सुन्दर नक्काशीदार ताबूत बना दिया
जिसमें दफन हो सके पूरी आज़ादी
खेत, हवा, रेत, नदी
बर्फ़ तक में मिला दिया जहर
एक अँधेरे और बदबूदार कमरे की चाबियाँ
मेरे हाथ में देकर
आप सोना चाहते हैं आराम की नींद
कितने खुश और गर्वित हैं आप
लेकिन जिस नाव में बिठाया गया है हमें
उसमें छेद हैं हज़ार
हम विवश हैं
करें प्रशंसा आपके इस महान कार्य की
क्योंकि आपने लिखवा दिया है पाठ्य पुस्तकों में
खुदवा दिए हैं शिलालेख
ले लिया है पुरस्कार
नाव डूबे या तैरे आपको क्या
जीवन सफल हुआ आपका
आप बाँटना चाहते थे जो-जो
आपस में बाँट लिया
खेतों, खलिहानों, सड़कों पर खड़ी
करोड़ों की भीड़ लगाती रही नारे
पीटती रही तालियाँ
आपके हर कृत्य पर बनती रहीं फिल्में
धन्य है
हर विनाश पर आपकी मुस्कान।
</poem>
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