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शिशु का आग्रह / मोहन साहिल

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<poem>
ओ जंगल!
तुम बचाकर रखना
सिर्फ एक जवान पेड़
मुझे झूलना है उसमें

ओ नदी!
अपनी एक धार
बस एक धार बचा कर रखना
मेरी प्रेरणा के लिए

ओ घाटी!
इसी तरह बिखेरे रहो
अपना अनुपम सौंदर्य
मुझे चाहिए प्रसन्नता

ओ खेत!
मत उगलना अभी तुम
पिलाया गया है तुम्हें जो ज़हर
मुझे जीवन चाहिए

ओ शिखर!
गिर मत पड़ना तू भरभराकर
मुझे भी होना है मजबूत
मैं लेता हूँ संकल्प
आज तक हुए तुम्हारे समस्त अपमानों का
प्रायश्चित करूँगा।
</poem>
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