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Kavita Kosh से
ऐसे श्रोता मिल गए
जिनकी कृपा से
कवियों के कलेगे कलेजे हिल गए
एक अधेड़ कवि ने जैसे ही गाया-
" उनका चेहरा गुलाब क्या कहिए।"
सामने से आवज़ आवाज़ आई-
" लेके आए जुलाब क्या कहिए।"
और कवि जी
नैनन नीर झरे।"
आवाज़ आई-"तुम भी कहाँ जाकर मरे
लखनऊ वाली कवयित्री की है।"
कवि बोला-"हमने ही उसे दी है।"