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सामना / अनूप सेठी

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दुख का पहाड़ खड़ा है बच्चे !
नन्हे हाथों से कुरेदोगे पहाड़

रत्ती भर खरोंच भी नहीं पाओगे
ज़िंदगी भर काटते रहोगे।

एक आँसू की डली तैरेगी
धुँधली हो के ही फैलेगी सारी दुनिया।

बस जबड़े कसके रहो
हो तो आंख झपकना मत।
(1985)
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