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ठाले की तपस्या / अनूप सेठी

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आओ
बैठें
खाली बिल्कुल
दुनिया के बीच बाज़ार
ठाले से

दुनिया की चीख पुकार
अपना सन्नाटे का शोर

सब छोड़-छाड़
हों मगन

अगन ठाले की

बैठें
पैठें
कहीं तो होगा
कुछ तो पार 
(1986)
</poem>
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