भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
कि बेहोशी हमारे होश का पैमाना हो जाए।
किरन फूटी है ज़ख्मों ज़ख़्मों के लहू से : यह नया दिन है :
दिलों की रोशनी के फूल हैं – नज़राना हो जाए।
रियाज़त ख़त्म होती है अगर अफ़साना हो जाए।
चमन खिलता था वह खिलताथा, और वह खिलना कैसा था
कि जैसे हर कली से दर्द का याराना हो जाए।
x x x x x x x x x x x x x x x x x x x x x x x
वो समस्तों सरमस्तों की महफ़िल में गजानन मुक्तिबोध आया
सियासत ज़ाहिदों की ख़ंदए-दीवाना हो जाए
(1964)
</poem>
397
edits