भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
दूसरी होगी कहानी <br>
शून्य में जिसके मिटे स्वर, धूलि में खोई निशानी;<br>
आज जिसपर प्यार विस्मितविस्मृत ,<br>
मैं लगाती चल रही नित,<br>
मोतियों की हाट औ, चिनगारियों का एक मेला!<br><br>
Anonymous user