भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओमप्रकाश सारस्वत |संग्रह=दिन गुलाब होने दो / ओमप...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ओमप्रकाश सारस्वत
|संग्रह=दिन गुलाब होने दो / ओमप्रकाश् सारस्वत
}}
<Poem>
आओ दोस्त !
बैठो दो बात करो दो बात पूछो
किसी दिन
यूँ ही
हो जाएगी शाम
सारा यूँ ही
रहा जाएगा
काम, काम, काम
ह्रदय की
गाँठ को खोल
कुछ बोझ
बाँट लो
क्षणभर आओ दोस्त
दो बात करो
दो बात पूछो
यह भी महत्वपूर्ण ही है कभी
कविता सुनना
किसी सपने में
झूलना
कोई सपना
बुनना
वोह जो
कैक्टस में
उलझी है
शेफाली
उस पर ही
क्षणभर
आओ दोस्त
दो बात करो
दो बात पूछो
उधर उपवन में
उदास बैठी है चाँदनी
इधर
मटियाले पाँवों में
घिसट रही
चाहतें
दोनों दो छोर हैं
सपनों के
सत्यों के
दोनों में
तर्क का
कोई जोड़ बिठलाओ
क्षणभर आओ दोस्त !
दो बात करो
दो बात पूछो
छोटी-छोटी व्यस्तताएँ
आदेशों-सी
बोले रहीं
मिलनातुर हाथों में
काँटों सी
डोल रहीं
एक क्रोंची-सी
पीड़ा
जो आँखों में
उभरी है
उसे ही
समय निकाल
प्यार से
पढ़ जाओ
क्षणभर आओ दोस्त !
दो बात करो
दो बात पूछो
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=ओमप्रकाश सारस्वत
|संग्रह=दिन गुलाब होने दो / ओमप्रकाश् सारस्वत
}}
<Poem>
आओ दोस्त !
बैठो दो बात करो दो बात पूछो
किसी दिन
यूँ ही
हो जाएगी शाम
सारा यूँ ही
रहा जाएगा
काम, काम, काम
ह्रदय की
गाँठ को खोल
कुछ बोझ
बाँट लो
क्षणभर आओ दोस्त
दो बात करो
दो बात पूछो
यह भी महत्वपूर्ण ही है कभी
कविता सुनना
किसी सपने में
झूलना
कोई सपना
बुनना
वोह जो
कैक्टस में
उलझी है
शेफाली
उस पर ही
क्षणभर
आओ दोस्त
दो बात करो
दो बात पूछो
उधर उपवन में
उदास बैठी है चाँदनी
इधर
मटियाले पाँवों में
घिसट रही
चाहतें
दोनों दो छोर हैं
सपनों के
सत्यों के
दोनों में
तर्क का
कोई जोड़ बिठलाओ
क्षणभर आओ दोस्त !
दो बात करो
दो बात पूछो
छोटी-छोटी व्यस्तताएँ
आदेशों-सी
बोले रहीं
मिलनातुर हाथों में
काँटों सी
डोल रहीं
एक क्रोंची-सी
पीड़ा
जो आँखों में
उभरी है
उसे ही
समय निकाल
प्यार से
पढ़ जाओ
क्षणभर आओ दोस्त !
दो बात करो
दो बात पूछो
</poem>