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<br>चौ०-सोभा सीवँ सुभग दोउ बीरा। नील पीत जलजाभ सरीरा।।
<br>मोरपंख सिर सोहत नीके। गुच्छ बीच बिच कुसुम कली के।।
<br>भाल तिलक श्रमबिंदु सुहाए। श्रवन सुभग भूषन छबि छाए।।
<br>दो0-केहरि कटि पट पीत धर सुषमा सील निधान।
<br>देखि भानुकुलभूषनहि बिसरा सखिन्ह अपान।।233।।
<br>–*–*–<br>चौ०-धरि धीरजु एक आलि सयानी। सीता सन बोली गहि पानी।।
<br>बहुरि गौरि कर ध्यान करेहू। भूपकिसोर देखि किन लेहू।।
<br>सकुचि सीयँ तब नयन उघारे। सनमुख दोउ रघुसिंघ निहारे।।
<br>दो0-देखन मिस मृग बिहग तरु फिरइ बहोरि बहोरि।
<br>निरखि निरखि रघुबीर छबि बाढ़इ प्रीति न थोरि।। 234।।
<br>–*–*–<br>चौ०-जानि कठिन सिवचाप बिसूरति। चली राखि उर स्यामल मूरति।।
<br>प्रभु जब जात जानकी जानी। सुख सनेह सोभा गुन खानी।।
<br>परम प्रेममय मृदु मसि कीन्ही। चारु चित भीतीं लिख लीन्ही।।
<br>गई भवानी भवन बहोरी। बंदि चरन बोली कर जोरी।।
<br>जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।।
<br>जय गज बदन षड़ानन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।।
<br>नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।।
<br>भव भव बिभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।।
<br>दो0-पतिदेवता सुतीय महुँ मातु प्रथम तव रेख।
<br>महिमा अमित न सकहिं कहि सहस सारदा सेष।।235।।
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<br>चौ०-सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायनी पुरारि पिआरी।।
<br>देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।।
<br>मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबही कें।।