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<br>तासु प्रभाउ जान नहिं सोई। तथा हृदयँ मम संसय होई॥३॥
<br>सो तुम्ह जानहु अंतरजामी। पुरवहु मोर मनोरथ स्वामी॥
<br>सकुच बिहाइ मागु नृप मोहि। मोही। मोरें नहिं अदेय कछु तोही॥४॥
<br>दो०-दानि सिरोमनि कृपानिधि नाथ कहउँ सतिभाउ॥
<br>चाहउँ तुम्हहि समान सुत प्रभु सन कवन दुराउ॥१४९॥
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