भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
703 bytes removed,
15:25, 27 जनवरी 2009
करत मनोरथ जात पुलकि, प्रगटत आनन्द नयो |
तुलसी प्रभु-अनुराग उमगि मग मङ्गल मूल भयो ||
आजु सकल सुकृत फलु पाइहौं |
सुखकी सींव, अवधि आनँदकी अवध बिलोकि हौं पाइहौं ||
सुतनि सहित दसरथहि देखिहौं, प्रेम पुलकि उर लाइहौं |
रामचन्द्र-मुखचन्द्र-सुधा-छबि नयन-चकोरनि प्याइहौं ||
सादर समाचार नृप बुझिहैं, हौं सब कथा सुनाइहौं |
तुलसी ह्वै कृतकृत्य आश्रमहिं राम लषन लै आइहौं ||
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader