Changes

तुमने पिन्हाई / सरोज परमार

1,530 bytes added, 12:18, 29 जनवरी 2009
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरोज परमार |संग्रह=समय से भिड़ने के लिये / सरोज प...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सरोज परमार
|संग्रह=समय से भिड़ने के लिये / सरोज परमार
}}
[[Category:कविता]]
<poem>
तुमने पिन्हाई घाघरिया धानी
गमकी धनखेती-सी मैं
घर-आँगन हरियाया तुम्हारा भी.
तुमने पिन्हाई अंगिया बसन्ती
अंग-अंग चटकी कलियाँ मेरे
उपवन मुस्काया तुम्हारा भी.
तुमने ओढ़ाई लाल चुनरिया
सिन्दूरी हुआ मेरा विश्वास
मन लहराया तुम्हारा भी.
तुमने दीं सतरंग चूड़ियाँ
हर रंग में डूबी तुझ संग
सतरंग नहाया जोबन तुम्हारा भी
तुमने की बदरंग चुनरिया
घुमड़े हिवड़ा उमड़ी अँखियाँ
आन गर्र तुम्हारी भी.
पिछवाड़े फेंकी बसन्ती अँगिया
तार-तार घाघरिया धानी
आब गई तुम्हारी भी.
टूट गईं सतरंग चूड़ियाँ
उतरी कलगी तुम्हारी भी.


</poem>
Anonymous user