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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रेम नारायण 'पंकिल'
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[[Category:कविता]]
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”तेरी सुषमा-रस पियें“, कहा, “बस यही प्राण की प्यास रहे।
कुछ रहे न रहे, रहो बस तुम मधुमास बारहो मास रहे।
तव भाव-मुग्धता स्नेह-स्निग्धता लोचन-प्रणय-हास अभिनव।
इतना ही बस इस परम अकिंचन का है प्राणप्रिये! वैभव।
नित प्लावित करता रहे मुझे तव सान्द्रानन्द पयोद प्रिये!
हो तुम्हीं राधिके! प्राण हमारे तुम्हीं प्राण का मोद प्रिये! “
हो मोद-महोदधि! कहाँ, विकल बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली॥76॥
</poem>
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