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{{KKRachna
|रचनाकार=गजानन माधव मुक्तिबोध |संग्रह=}}<Poem>जीवन के प्रखर समर्थक-से जब प्रश्न चिन्ह[[Category:बौखला उठे थे दुर्निवार,तब एक समंदर के भीतर:रवि की उद्भासित छवियों का::गहरा निखारस्वर्णिम लहरों सा झल्लाता:झलमला उठा;मानो भीतर के सौ-सौ अंगारी उत्तर:सब एक साथ::बौखला उठे:::तमतमा उठे !!संघर्ष विचारों का लोहू:पीड़ित विवेक की शिरा-शिरा::में उठा गिरा,मस्तिष्क तंतुओं में प्रदीप्त:वेदना यथार्थों की जागी !!मेरे सुख-दुख ने अकस्मात् भावुकतावश:सुख-दुख के चरणों की::मन ही मन:::यों की 'पालागी' —कण्ठ में ज्ञान संवेदन के,लम्बी कविता]]