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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रेम नारायण 'पंकिल'
|संग्रह=
}}
[[Category:कविता]]
<poem>
आ जा व्रजपति के परम दुलारे! माखन तुम्हें खिलाऊँगी।
आ मेरे नयनों के तारे! मैं चरण-कमल सहलाऊँगी।
कब से हैं तरस रही आँखे मैं बुला-बुलाकर हारी हूँ।
आँचल फैलाये दरस-भीख माँगती निरीह भिखारी हूँ।
हे राधा-आराधनवारे आ, हिय-रस तुम्हें पिला पाऊँ।
आ मिलो प्रेम-मतवारे! मैं तेरे उर-बीच समा जाऊँ।
आ यशुमति के वारे! विकला बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥147॥
</poem>
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आ जा व्रजपति के परम दुलारे! माखन तुम्हें खिलाऊँगी।
आ मेरे नयनों के तारे! मैं चरण-कमल सहलाऊँगी।
कब से हैं तरस रही आँखे मैं बुला-बुलाकर हारी हूँ।
आँचल फैलाये दरस-भीख माँगती निरीह भिखारी हूँ।
हे राधा-आराधनवारे आ, हिय-रस तुम्हें पिला पाऊँ।
आ मिलो प्रेम-मतवारे! मैं तेरे उर-बीच समा जाऊँ।
आ यशुमति के वारे! विकला बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥147॥
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