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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रेम नारायण 'पंकिल'
|संग्रह=
}}
[[Category:कविता]]
<poem>
बस एक तुम्हारे सिवा श्याम! है अन्य किसी की चाह नहीं।
घर उजड़े-बसे बने-बिगड़े इसकी मुझको परवाह नहीं।
पद-रज से वंचित रखो नहीं प्रिय! मैं पदतरी तुम्हारी हूँ।
छीनो मत अपनापन जीवनधन! मैं अनुचरी तुम्हारी हूँ।
तेरे वियोग की असहनीय अब पीर नहीं सह पाऊँगी।
सुख हुआ हाय! अपना सपना अपना कह किसे बुलाऊँगी।
फिरती नगरी-नगरी-डगरी बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥150॥
देखे बिन पलभर भी न रहा जाता है हे मुरली वाले !
पैरों पड़ती हूँ अब न बहुत तरसाओ मोर मुकुटवाले !
</poem>
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[[Category:कविता]]
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बस एक तुम्हारे सिवा श्याम! है अन्य किसी की चाह नहीं।
घर उजड़े-बसे बने-बिगड़े इसकी मुझको परवाह नहीं।
पद-रज से वंचित रखो नहीं प्रिय! मैं पदतरी तुम्हारी हूँ।
छीनो मत अपनापन जीवनधन! मैं अनुचरी तुम्हारी हूँ।
तेरे वियोग की असहनीय अब पीर नहीं सह पाऊँगी।
सुख हुआ हाय! अपना सपना अपना कह किसे बुलाऊँगी।
फिरती नगरी-नगरी-डगरी बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥150॥
देखे बिन पलभर भी न रहा जाता है हे मुरली वाले !
पैरों पड़ती हूँ अब न बहुत तरसाओ मोर मुकुटवाले !
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