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हनुमान चालीसा / तुलसीदास

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कवि: [[तुलसीदास]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=तुलसीदास]]}}{{KKCatKavita}}<poem>श्री गुरू चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि,बरनउं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥1॥
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार,बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेस बिकार ॥2॥
श्री गुरू चरण सरोज रजजय हनुमान ज्ञान गुन सागर, निज मन मुकुरु सुधारि,<br>बरनउं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥1॥<br><br>जय कपीस तिहुं लोक उजागर ॥3॥
बुद्धिहीन तनु जानिकेराम दूत अतुलित बल धामा, सुमिरौं पवन कुमार,<br>बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेस बिकार ॥2॥<br><br>अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥4॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागरमहावीर बिक्रम बजरंगी,<br>जय कपीस तिहुं लोक उजागर ॥3॥<br><br>कुमति निवार सुमति के संगी ॥5॥
राम दूत अतुलित बल धामाकंचन बरन बिराज सुबेसा,<br>अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥4॥<br><br>कानन कुंडल कुँचित केसा ॥6॥
महावीर बिक्रम बजरंगीहाथ बज्र और ध्वजा बिराजे,<br>कुमति निवार सुमति के संगी ॥5॥<br><br>काँधे मूंज जनेऊ साजे ॥7॥
कंचन बरन बिराज सुबेसाशंकर सुवन केसरी नंदन,<br>कानन कुंडल कुँचित केसा ॥6॥<br><br>तेज प्रताप महा जगवंदन ॥8॥
हाथ बज्र और ध्वजा बिराजेविद्यावान गुनि अति चातुर,<br>काँधे मूंज जनेऊ साजे ॥7॥<br><br>राम काज करिबे को आतुर ॥9॥
शंकर सुवन केसरी नंदनप्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया,<br>तेज प्रताप महा जगवंदन ॥8॥<br><br>राम लखन सीता मन बसिया ॥10॥
विद्यावान गुनि अति चातुरसूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा,<br>राम काज करिबे को आतुर ॥9॥<br><br>विकट रूप धरि लंक जरावा ॥11॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसियाभीम रूप धरि असुर सँहारे,<br>राम लखन सीता मन बसिया ॥10॥<br><br>रामचंद्र के काज सवाँरे ॥12॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावालाय संजीवन लखन जियाए,<br>विकट रूप धरि लंक जरावा ॥11॥<br><br>श्री रघुबीर हरषि उर लाए ॥13॥
भीम रूप धरि असुर सँहारेरघुपति किन्ही बहुत बड़ाई,<br>रामचंद्र के काज सवाँरे ॥12॥<br><br>तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥14॥
लाय संजीवन लखन जियाएसहस बदन तुम्हरो जस गावैं,<br>श्री रघुबीर हरषि उर लाए ॥13॥<br><br>अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥15॥
रघुपति किन्ही बहुत बड़ाईसनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा,<br>तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥14॥<br><br>नारद सारद सहित अहीसा ॥16॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैंजम कुबेर दिगपाल जहाँ ते,<br>अस कवि कोविद कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥15॥<br><br>सकें कहाँ ते ॥17॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसातुम उपकार सुग्रीवहिं किन्हा,<br>नारद सारद सहित अहीसा ॥16॥<br><br>राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥18॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ तेतुम्हरो मंत्र विभीषन माना,<br>कवि कोविद कहि सकें कहाँ ते ॥17॥<br><br>लंकेश्वर भये सब जग जाना ॥19॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं किन्हाजुग सहस्त्र जोजन पर भानू,<br>राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥18॥<br><br>लील्यो ताहि मधुर फ़ल जानू ॥20॥
तुम्हरो मंत्र विभीषन मानाप्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं,<br>लंकेश्वर भये सब जग जाना ॥19॥<br><br>जलधि लाँघि गए अचरज नाहीं ॥21॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानूदुर्गम काज जगत के जेते,<br>लील्यो ताहि मधुर फ़ल जानू ॥20॥<br><br>सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥22॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहींराम दुआरे तुम रखवारे,<br>जलधि लाँघि गए अचरज नाहीं ॥21॥<br><br>होत ना आज्ञा बिनु पैसारे ॥23॥
दुर्गम काज जगत के जेतेसब सुख लहै तुम्हारी शरना,<br>सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥22॥<br><br>तुम रक्षक काहु को डरना ॥24॥
राम दुआरे तुम रखवारेआपन तेज सम्हारो आपै,<br>होत ना आज्ञा बिनु पैसारे ॥23॥<br><br>तीनों लोक हाँक तै कांपै ॥25॥
सब सुख लहै तुम्हारी शरनाभूत पिशाच निकट नहि आवै,<br>तुम रक्षक काहु को डरना ॥24॥<br><br>महाबीर जब नाम सुनावै ॥26॥
आपन तेज सम्हारो आपैनासै रोग हरे सब पीरा,<br>तीनों लोक हाँक तै कांपै ॥25॥<br><br>जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥27॥
भूत पिशाच निकट नहि आवैसंकट तै हनुमान छुडावै,<br>महाबीर जब नाम सुनावै ॥26॥<br><br>मन करम वचन ध्यान जो लावै ॥28॥
नासै रोग हरे सब पीरापर राम तपस्वी राजा,<br>जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥27॥<br><br>तिन के काज सकल तुम साजा ॥29॥
संकट तै हनुमान छुडावै,<br>मन करम वचन ध्यान और मनोरथ जो कोई लावै ॥28॥<br><br>,सोइ अमित जीवन फ़ल पावै ॥30॥
सब पर राम तपस्वी राजाचारों जुग परताप तुम्हारा,<br>तिन के काज सकल तुम साजा ॥29॥<br><br>है परसिद्ध जगत उजियारा ॥31॥
और मनोरथ जो कोई लावैसाधु संत के तुम रखवारे,<br>सोइ अमित जीवन फ़ल पावै ॥30॥<br><br>असुर निकंदन राम दुलारे ॥32॥
चारों जुग परताप तुम्हाराअष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता,<br>है परसिद्ध जगत उजियारा ॥31॥<br><br>अस वर दीन्ह जानकी माता ॥33॥
साधु संत के तुम रखवारेराम रसायन तुम्हरे पासा,<br>असुर निकंदन राम दुलारे ॥32॥<br><br>सदा रहो रघुपति के दासा ॥34॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दातातुम्हरे भजन राम को पावै,<br>अस वर दीन्ह जानकी माता ॥33॥<br><br>जनम जनम के दुख बिसरावै ॥35॥
राम रसायन तुम्हरे पासाअंतकाल रघुवरपूर जाई,<br>सदा रहो रघुपति के दासा ॥34॥<br><br>जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई ॥36॥
तुम्हरे भजन राम को पावैऔर देवता चित्त ना धरई,<br>जनम जनम के दुख बिसरावै ॥35॥<br><br>हनुमत सेइ सर्व सुख करई ॥37॥
अंतकाल रघुवरपूर जाईसंकट कटै मिटै सब पीरा,<br>जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई ॥36॥<br><br>जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥38॥
और देवता चित्त ना धरईजै जै जै हनुमान गुसाईँ,<br>हनुमत सेइ सर्व सुख करई ॥37॥<br><br>कृपा करहु गुरु देव की नाईं ॥39॥
संकट कटै मिटै सब पीराजो सत बार पाठ कर कोई,<br>जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥38॥<br><br>छूटइ बंदि महा सुख होई ॥40॥
जै जै जै जो यह पढ़ै हनुमान गुसाईँचालीसा,<br>कृपा करहु गुरु देव की नाईं ॥39॥<br><br>होय सिद्धि साखी गौरीसा,
जो सत बार पाठ कर कोईतुलसीदास सदा हरि चेरा,<br>छूटइ बंदि महा सुख होई ॥40॥<br><br>कीजै नाथ ह्रदय महं डेरा,
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा,<br>होय सिद्ध साखी गौरीसा,<br><br> तुलसीदास सदा हरि चेरा,<br>कीजै नाथ ह्रदय महं डेरा,<br><br> पवन तनय संकट हरनहरण्, मंगल मूरति रूप ॥<br>राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥<br><br/poem>
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