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शिवालों मस्जिदों को छोड़ता क्यों नहीं।
लहूलुहान हुए हैं लोग तेरी खातिरख़ातिर,खामोशी ख़ामोशी के आलम को तोड़ता क्यों नहीं।
कहदे की नहीं है तू गहनोंन गहनों से सजा पत्थर,
आदमी की ज़हन को झंझोड़ता क्यों नहीं,
अन्याय की कलाई मरोड़ता क्यों नहीं।
बाढ़ के रुख को मोड़ता क्यों नहीं।
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