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Kavita Kosh से
मन में थी अहिंसा की लगन तन पे लंगोटी<br>
लाखों में घूमता था लिये सत्य की सोंटीसोटी<br>
वैसे तो देखने में थी हस्ती तेरी छोटी<br>
लेकिन तुझे झुकती थी हिमालय की भी चोटी<br>
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