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बदलता मौसम / तेज राम शर्मा

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<poem>
साँझ के बाद
कोई घूमने
नहीं निकलता
दूर अक्षांश से
रात की सेनाएँ
दिन को परास्त करती हुई
देहरी पर दस्तक देने लगती हैं
रात का शौकीदार शिशिर
भाप उड़ाते हुए
सपनों का पीछा करता रहता है

मलिन-सा दिन
बहुत देर में जागता है
ओस की बूँदों में
उतरते नहीं इन्द्रधनुष
सूखी पत्तियों में से सवेरा
धूँएँ की तरह आवारा उड़ता रहता है
गाड़ियाँ चलती और चिल्लाती
रहती हैं सड़कों पर
काला धुआँ
सूरज के मुँह पर कालिख पोत आता है

पुराने संबंध
पतझड़ के पत्तों की तरह
हथ हिलाते हैं
गली-मुहल्ले के परिचित चेहेरे
हमेशा की तरह
शून्य में ताकते रहते हैं

दिन ढलते ही
गली का एक लावारिस काला कुत्ता
धीरे से मौसम बदलने का
समाचार सुना जाता है।
</poem>
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