भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जैसे / अरुण कमल

87 bytes added, 06:43, 5 फ़रवरी 2009
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अरुण कमल |संग्रह=नये इलाके में / अरुण कमल
}}
<Poem>
जैसे
 
मैं बहुत सारी आवाज़ें नहीं सुन पा रहा हूँ
 
चींटियों के शक्कर तोड़ने की आवाज़
 
पंखुड़ी के एक एक कर खुलने की आवाज़
 
गर्भ में जीवन बूंद गिरने की आवाज़
 
अपने ही शरीर में कोशिकाएँ टूटने की आवाज़
 
इस तेज़ बहुत तेज़ चलती पृथ्वी के अन्धड़ में
 
जैसे मैं बहुत सारी आवाज़ें नहीं सुन रहा हूँ
 
वैसे ही तो होंगे वे लोग भी
 
जो सुन नहीं पाते गोली चलने की आवाज़ ताबड़तोड़
 
और पूछते हैं--कहाँ है पृथ्वी पर चीख ?
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,226
edits