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अपवाद / अरुण कमल

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|रचनाकार=अरुण कमल |संग्रह=नये इलाके में / अरुण कमल
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 <Poem>
जब सब वाह वाह कर रहे हों
 
जब पूरे मुल्क में एक ही नाम का जाप हो
 
तब मैं उठूंगा और कहूंगा--
 
और सब तो ठीक, पर उस इन्सान में
 
एक ख़राबी भी थी,
 
वो यह कि लोग जब खाने बैठते
 
वह नाक में उंगली कोंच लेता ।
 
जब सब थू थू कर रहे हों
 
जब मौत के बाद भी फाँसी की मांग हो
 
तब मैं उठूंगा और कहूंगा--
 
ख़ुदा के बन्दों, उस हैवान में एक
 
अच्छाई भी थी,
 
वो यह कि जब लोग एक साथ सोए
 
उसने कभी अकेले मसहरी नहीं बाँधी ।
</poem>
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