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|संग्रह=एक टुकड़ा धूप / ओमप्रकाश सारस्वत
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<Poem>
::'''एक'''
किसी दुर्दिन में
रूईं के फाहों सी
पंचतंत्र का सिंह
::'''दो'''
बड़े वर के सफेद लट्ठे के थान-सी
अछोर फैली यह उजली बर्फ़
न समझ बजाज
::'''तीन'''
किसी की खुशी में
कोई विरला ही
निपट-लिपट कर
::'''चार'''
आगामी धूप के पर्व में
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