भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुनी-सुनाई / केशव

706 bytes added, 21:55, 5 फ़रवरी 2009
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव |संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव }} <poem> ...
{{KKGlobal}}

{{KKRachna

|रचनाकार=केशव
|संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव
}}
<poem>
हम सुनी सुनाई पर
यकीन नहीं करते
कहते हैं सभी फिर भी
यकीन करते हैं
सुनी-सुनाई पर ही
सुन-सुनकर
अनसुना करना
हमारी आदत है
क्या इसीलिए होते हैं कान !

कान न होते
तो भी क्या सुनते हम
सुनकर कैसे
अनसुना करते हम।
</poem>
Mover, Uploader
2,672
edits