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Kavita Kosh से
चाक करना है इसी ग़म से गिरेबान-ए-कफ़न
कौन खोलेगा तेरे बन्द-ए-कबा तेरे मेरे बाद
वो हवाख़्वाह-ए-चमन हूं कि चमन में हर सुब्ह
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