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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव |संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव }} <poem> ...
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{{KKRachna
|रचनाकार=केशव
|संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव
}}
<poem>
खिड़की
खुली रहना
इंतज़ार के पहले ही पल
मौसम का गुलदस्ता लिये
आऊंगा मैं
तुम मत होना उदास
शब्दों ने ही खोली सांकलें
लाये हमें करीब
शब्दों ने ही
हमें दिये पंख
ताकि
जंगल से उसका हरापन
वृक्ष से उसकी छाया
आकाश से उसका विस्तार
नदी से उसका
कोमल सीत्कार
धूप से उसकी मुग्धता
समुद्र से उसकी गहराई
हवा से उसकी तन्मयता
फूलों से उनकी कोमलता
एक-दूसरे के लिये
बटोर लाएं हम
खामोश हैं शब्द
तो क्या
छोड़ तो गये
अपना संगीत
कर गये हमें
संग की महक से सराबोर
इस महक को
धूप की कटोरियों में भर लाऊंगा मैं
तुम मत होना उदास
खुली रखना ख़िड़की
रात की स्याही में
उजाले की कलम डुबो
गीत लिखकर झरने का
लाऊँगा मैं
तुम मत होना उदास।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=केशव
|संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव
}}
<poem>
खिड़की
खुली रहना
इंतज़ार के पहले ही पल
मौसम का गुलदस्ता लिये
आऊंगा मैं
तुम मत होना उदास
शब्दों ने ही खोली सांकलें
लाये हमें करीब
शब्दों ने ही
हमें दिये पंख
ताकि
जंगल से उसका हरापन
वृक्ष से उसकी छाया
आकाश से उसका विस्तार
नदी से उसका
कोमल सीत्कार
धूप से उसकी मुग्धता
समुद्र से उसकी गहराई
हवा से उसकी तन्मयता
फूलों से उनकी कोमलता
एक-दूसरे के लिये
बटोर लाएं हम
खामोश हैं शब्द
तो क्या
छोड़ तो गये
अपना संगीत
कर गये हमें
संग की महक से सराबोर
इस महक को
धूप की कटोरियों में भर लाऊंगा मैं
तुम मत होना उदास
खुली रखना ख़िड़की
रात की स्याही में
उजाले की कलम डुबो
गीत लिखकर झरने का
लाऊँगा मैं
तुम मत होना उदास।
</poem>